Friday, October 9, 2020

शिकायत

मैं दिन भर चुपचाप मुस्कुराती हूँ 
बस रात में तकिये के कोने भिगोती हूँ 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है 

मैं उनकी महफ़िलों में खुलकर शामिल नहीं होती 
उनकी मस्खरियों पर अब खुल के ठहाका नहीं लगाती 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है 

रोटियां गिन कर बनती हैं घर में , 'बस केवल एक ?'
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है

एक अरसा था जब मेरे घर देरी से आना 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत थी 
आज मैं अपने कमरे में पूरा दिन बंद क्यूँ हूँ 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है

काम के लिए मेरा उतावलापन रोके न रुकता था 
आज मैं दफ्तर क्यूँ नहीं जाना चाहती 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है

दुनिया में हो रहे हर सही-गलत के लिए लड़ना मिज़ाज था मेरा 
आज हालातों से क्यूँ नहीं लड़ती 
इस बात की उन्हें मुझसे शिकायत है

कई मरतबा मेरे अल्फ़ाज़ों ने बहुत कुछ बयाँ  किया है 
आज क्या नया ढूंढ रहे हो नज़म में प्रिए  
मेरी खामोशियाँ क्यूँ सुनाई नहीं देती 
इस बात की मुझे उन सब से शिकायत है। 

Saturday, June 20, 2020

आपका आविष्कार 

मैं हूँ हर इमारत की बेजोड़ बुनियाद 
ईंट मेरी इकाई है और सीमेंट, पत्थर से हुई हूँ मैं ईजाद 
मानव जाती ने ही किया है मेरा आविष्कार 
अब तक मुझे पहचान ही लिया होगा - मेरा नाम है दीवार। 
मेरी अंदरूनी ताकत से हर इमारत की नींव परखी जाती है 
सूरज की बिखरी किरनों  में मेरी परछाई दूर-दूर तक जाती है 
मैं हूँ चीन में, बर्लिन में, कुम्भलगढ़ में और दुनिया के हर कोने में 
पानी को जो संचित करना है, मैं हूँ उस बांध के होने में 
किसी भी निर्माण की सीमा होती नहीं मेरे बिना 
मेरे नाम पर तो मशहूर सिनेमा भी है बना 
 मैं अक्सर चार बहनों के समूह में ही आती हूँ 
मेरे कान तेज़ हैं, बच के रहना, आपकी सारी बातें सुन पाती हूँ
मुझको पलस्तर कर और रंग भर आप लोग खूब सजाते हो 
खुद के मन को लुभाने के लिए सुन्दर तस्वीरें भी टँगाते हो 
मौसम के बदलते मिज़ाज़ को मैं अपने ढाल से हूँ रोके 
इन सभी का सही मात्रा में लुत्फ़ उठाने के लिए मैंने ही खुद में दिए हैं झरोके 
मैंने अपने भीतर कई अबलाओं के सपनों को दम तोड़ते है देखा
आज भी घर की कई सीताओं की मैं ही हूँ वो लक्ष्मण रेखा 
मैं घर, ज़मीन, जायदाद के लिए फ़ौरन ही खिंच जाती हूँ 
कोई भी दो लोगों में जब भेद करना हो तो मैं तुरंत ही बिछ जाती हूँ 
बात गर धर्म, जाति या देश की आये तो मैं बस खड़ी हो जाती हूँ 
आपकी हैसियत और अहम् से भी ज्यादा मैं उस वक़्त बड़ी हो जाती हूँ
मैं देख पाती हूँ सर्वत्र पर अफ़सोस है कि मैं हूँ मूक 
मेरे एक ओर पकवान बनते हैं और दूजी ओर कतारों में लगती है भूँक 
आप मुझे कितना भी कोसिये पर मैं अपना फ़र्ज़ सच्चाई से निभाती हूँ 
इस हिस्से की हकीकत उस हिस्से से बखूबी छुपाती हूँ 
मैं आपको महफूज़ रखूंगी चाहे धूप हो या बारिश 
इसके बदले आपसे करनी है एक छोटी सी गुज़ारिश 
मुझे अपने घर में बेशक शामिल करें पर अपने दिलों से रखें दूर 
मैं तो हूँ ही पत्थर दिल क्या करूँ, पर आप न हों मजबूर !!

Saturday, May 9, 2020

Quarantined

There is a new addition to our conversational vocabulary- Quarantined
Restricted to the outside world and to the houses confined..
Every night sitting across my house window
I have slowly seen the spring fall into the summer
Birds are the singers 
And the gusting winds, the new drummer
Gone are those Monday blues
Ticking of the clock continues
Each day the sun rises higher in the sky 
I still fail to collect the sunshine for the winters
But for one thing I must prepare, gather and retry
Rebuild a new life from the scattered splinters 

Tuesday, April 28, 2020

नई दुनिया


पैसे और शौहरत की दौड़ न ख़त्म होने वाले सिलसिले हैं ,
शहर तो बड़े हो रहे हैं पर घर छोटे हो चले हैं। 
एक दिन अचानक ये सिलसिला कुछ बदला और छा गया जैसे कोई सन्नाटा .. 
घर से दूर भागने वाला हर इंसान झटपट अपने घर को लौटा। 
तेज भागती इस दुनिया के जैसे पहिये ही गए थम 
दूर दूर तक सैर करने वाले ये पाँव जैसे घर में ही गए जम 
समझ ही नहीं आ रहा था कि दुनिया किस बात पर कर रही है इतना मंथन 
खुशनुमा चल रही इस ज़िन्दगी में कहाँ से आ गया ये नया व्यथण 
इंटरनेट पर इस विपदा को जानने के लिए किया मैंने अपना शोध जारी 
कुछ ही क्षण में समझ आ गया ये चीज़ नहीं है मामूली : ये है एक भयानक महामारी 
दुनिया की तेज़ रफ़्तार पर लगा है जैसे कोई ब्रेक
यूं तो हमारे पचास अलग दुश्मन हैं पर इस बार सबका था एक 
इस दुश्मन के वार से फैली है स्थिति आपातकालीन 
अखबार, टेलीविज़न, हर तरफ का माहौल हो गया है ग़मगीन 
थिएटर, रेस्ट्रॉं, स्कूल सब पर अब ताला लटका है 
आप घर से न निकलें, इस लिए दफ्तर भी घर पर आ पहुंचा है 
इस विपदा के वक़्त वैसे तो नसीहत देने की नहीं है मेरी कोई बिसात 
फिर भी एक दोस्त के नाते कहती हूँ आपसे एक बात 
इस घडी में घर के दरवाजे ज़रूर बंद कीजिये पर दिल के दरवाजे खोलिये 
समय की दराज़ में जो किस्से पड़े हैं, उन्हें अपनों से बोलिये 
लीजिये चाय की चुस्कियां साथ में, रिश्तो में मिठास घोलिये 
देखिये घर पर कोई सिनेमा, उस नए गाने पर चाहे डोलिये 
निकालिये उस अलमारी से कोई अपनी कोई पुरानी किताब कुछ रंग उनमें भर लीजिये 
लगा लीजिये कोई नया पौधा या कोई नया व्यंजन इज़ाद कर लीजिये 
जाइये अपनी बालकनी में और देखिये तारों का टिमटिमाना और सुनिए चिड़ियों का चहकना 
पेड़ों में नए पत्तों का आगमन हुआ है, महसूस कीजिये फूलों का महकना 
खुशनसीब है हम जो, साथ में हमारे है परिवार और रहने को एक घर 
कुछ लोगों का जीवन इस आपदा में अफ़सोस हुआ है बाद से बदतर 
मुसीबत में फंसे लोगों के लिएब मदद का हाथ बढ़ाएं 
जो हो सके अपनी तरफ से मदद करने में न सकुचायें 
इस मुसीबत की घड़ी में समाज के कई सिपाही हमारी ढाल बन कर खड़े हैं 
इस बिमारी के लिए अपने परिवार को पीछे छोड़ वो रोज़ नई जंग लड़े हैं 
इस दुविधा की घडी में में आपसे बस इतना सा है कहना 
आपको इस जंग ले लिए बस अपने घर में है रहना 
मिलकर हिम्मत रखेंगे तो ज़रूर होगी इस बीमारी की हार 
याद रहे गर आज सर सलामत है तो कल पगड़ी होगी हज़ार !


Friday, August 23, 2019

उदासीनता (Indifference)

             

मैं सर झुका के चली जाती हूँ रोज़ उसी सड़क से 
उस सड़क पर कई गाड़ियां जाम में रोजाना फँसती हैं 
वाहन चालक एक दूसरे पर हार्न बजा कर अपने दिन और दिल दोनों की झल्लाहत निकालते हैं 
पर मुझे क्या फर्क पड़ता है, मेरा घर दफ्तर से पास ही है 
मुझे लेने कंपनी की बस आती है, मैं उसी में बैठी रहती हूँ , कान में रेडियो लगाए !

शहर के बीचों -बीच हाट लगता  है 
ताज़ी हरी सब्ज़ियां, रंगीन कपडे, चमकीले बर्तन, पूजा का सामान 
बेचने वाला पहले एक ऊंची बोली लगाता है.. 
फिर ग्राहक का मिज़ाज़ देखकर भाव सीढ़ी से उतारने लगता है 
मैं इस मोलभाव की बहस पर ख़ास गौर नहीं देती, मेरा सारा राशन बिग बास्केट से आता है  
मैं अपनी आँखों पर धूप का चश्मा चढ़ा लेती हूं, मुझे धूप सहन नहीं होती !

हर सुबह मेरे घर में अखबार आता है, फिर आज तो शनिवार है 
हर शनिवार चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ना आदत है मेरी 
अखबार की सुर्ख़ियों कई लोगों की आपबीतियों से सुर्ख हैं  
भुखमरी, गरीबी, हिंसा, नफरत, जंग, साम्प्रदायिकता हर पहलू पर एक खबर ज़रूर छपी है 
घने जंगल जल रहे हैं, देश नफरत की आग में पिघल रहे हैं 
मैं अपने घरवालों  से  दूरभाष द्वारा संपर्क करती हूँ, उनका और मौसम का हालचाल लेती हूं 
फिर अपने घर की खिड़कियां बंद कर लेटी हूँ
A.C. चलाना पड़ता है करीब करीब पूरे साल, गरमी हर दिन बढ़ रही है !

अरे मैंने कल की बात तो आप लोगों को बताई ही नहीं 
मैंने कल घर के बहार अपने पडोसी को शाम को देखा 
उसने मुझे देख कर भी अनदेखा कर दिया .... न कोई मुस्कराहट, न दुआ- सलाम
 ये बड़े शहर के लोग भी बड़े मतलबी हो गए हैं 
बिना ज़रुरत के कोई सर उठाकर भी नहीं देखता, पर मुझे ये उदासीनता बिलकुल पसंद नहीं ! 

Friday, August 16, 2019

The way

I am walking pass my lonely way

Hoping to see some gleaming ray

In the evening sky, the flocks flutter back to home

At this point of hour, I wonder why do I roam

My ardent eyes paint the picture of a lovely spring

With every night, I dream of the bright morning

I long to hear the distant temple chime

And I long to accelerate this nightly time....

But I open my eyes to see all is dead and still

There is more time to reach my home, downhill...

Thursday, February 7, 2019

यादें


एक वक़्त था जब हम साथ रहकर भी कभी नहीं थकते थे
जब भी मौका मिले बिना कुछ सोचे, जो मुँह में आये वो बकते थे
न शब्दों पे पर्दा था, न कोई थी विचारों में रुकावट
हँसी  हो या रुलाई उसमें औपचारिकताओं की नहीं थी दिखावट
आज का वक़्त बदला है ..
कल ही किसी पुराने दोस्त से बात करने को मन चाह रहा था
सीधे कॉल ही करते हैं दिल में था, पर दिमाग पहले अपॉइंटमेंट लेने को मना रहा था
बहुत सोचने के बाद, व्हाट्सएप्प पे एक छोटा सा पिंग कर दिया
उसने व्हाट्सएप्प का जवाब देने के लिए अगला दिन ही कर दिया
इनकी छोड़िये ..
कुछ दोस्त तो इतने तल्लीन हैं, उनके मैसेज का रिप्लाई भी नहीं आता
भूले-बिसरे आ भी जाये तो बात करने की इच्छा है, ऐसा इज़हार नहीं आता
आपने इन्हें याद करके फ़ोन किया होगा, फ़ोन नहीं  उठाया उस वक़्त ये समझ भी लें आप
लेकिन गलती से भी महीनों, सालों बाद भी कभी इनका कॉल-बैक नहीं आता
सोचा पहले बहुत आसान था :
सायकल की घंटी बजाते थे, दोस्त खेलने का इशारा समझ जाते थे..
कॉलेज के लास्ट पेपर  के बाद कौनसी पिक्चर देखेंगे, वो ग्रुप स्टडी के वक़्त ही तय कर जाते थे..
इन्हीं दोस्तों के साथ आपने कभी अपना टिफ़िन खाया होगा
इन्हीं के साथ सायकल पे कभी रेस लगाईं होगी
शायद इनके साथ बैठके कई अनकही, अनसुनी कहानियां और किस्से छुपाये होंगे
इनके साथ रात रात को बैठकर नोट्स किसी की नक़ल कर उतारे होंगे
लेकिन आज का वक़्त बदला है..
आज ये अपनी दुनिया में व्यस्त हैं
अपने आप में सभी मस्त हैं
वक़्त बदलता है तो ज़रूरतें भी बदलती हैं
आप की जगह कई और शख्सियत ले लेती हैं
पर इस भागती दुनिया में ज्यादा अपेक्षाओं के बंधन में न बाँधूँगी दोस्त
पर जब कभी अपनी तुम्हें लगे, ज़िन्दगी हो गई है अस्त व्यस्त
तब कभी याद करके देखना ...
दिल खोलके बात करके देखना ...
तुम्हारी सारी यादें मुस्कुराहटें, किस्से कहानियां, अब भी दिल के कोने में महक रहे हैं गुलदस्ते की तरह
फुर्सत मिले तो चले आना उन यादों में, फिर तफरी करेंगे बीते दिनों की तरह 


Monday, September 3, 2018

कुछ पंक्तियाँ ऐसे ही.... II


इस जबाब का सवाल कहीं खो गया है
हो सके तो दोबारा उठाना
कोशिशें तो कई चीज़ों की करी हैं आपने
हो सके तो फिर अपनी कलम को उठाना ......

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मैं तो निकली थी घर से तुम्हारे पास आने के लिए
पर मेरे कदम के दायरे उनके सवालों के दायरे से छोटे थे।
रस्ते के झींगुर और पपीहे से तो बचकर आ जाती 
पर उस भूरे काले बादल को मैं क्या मुँह दिखाती? 

मैं तो यही सोचती रही ..मुझे जाने ही क्यूँ दिया ,
रोक लिया होता उस दिन भी जैसे हर बार पकड़ के रोक लेते थे…. 
बस थोडा आनाकानी ही तो करती 
पर कुछ देर में मान ही जाती 

फिर तुम्हारे पास तो जलाने को सिगरेट भी थी,
 मेरे पास तो बस दिल था ....
वो तो कब का तुम्हें दे आई थी .....

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Monday, January 1, 2018

आगाज़

जैसे कलियों में छिपा है फूलों के महकने का अंदाज़,
जैसे नन्हे परों के ही बीच छिपा है चहकने का अंदाज़,
जैसे अंकुरों में हो कैद उस पेड़ के फलने फूलने का राज़,
जैसे सुबह कि पहली किरण को है अँधेरा भगाने पर नाज़,
जैसे हर किलकारी में गूंजता है मोहक हंसी के गीतों का साज,
जैसे उस अदनी सी बूँद को मिला है घट भरने का काज,
बस उसी तरह इन तस्वीरों को सजायेंगे कुछ चंद अलफ़ाज़
हमारी इस अदनी सी कोशिश से करते हैं हम इस संकलन का आगाज़ !!

Friday, May 26, 2017

प्यार है ....

प्यार है मुझे तुम्हारे गुस्से से, झुंझलाहट से, 
तुम्हे चौंका देने वाली उस रेल गाड़ी की आहट से..
प्यार है मुझे तुम्हारे आँखों के आंसुओं से,
माथे से टपकती हुई उन पसीने की बूंदों से..
तुम्हारे केशों में सजते हुए उस रूपल ताज से, 
तुम्हारी वक़्त बेवक़्त की खांसी में छिपे हुए साज़ से...  
प्यार है मुझे तुम्हारे डर से, तुम्हारी चिंता से , तकरार से,
मुझसे खुल के बेहिचक किए गए उस इनकार से..
प्यार है मुझे तुम्हारी माथे पर पड़ती सिलवटों से,
रात - बेरात तुम्हारी उन बेचैन करवटों से.. 
है प्यार मुझे तुम्हारी हर उस कमी से जो तुम्हें  'तुम' बनाती हैं  
क्यूंकि तुम्हारे होने से ही ये मुझे 'हम' बनाती हैं।